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ज्योतिष

भारतीय ज्योतिष की उत्पत्ति वेदों से हुई है ( चार वेद चार उपवेद तथा वेदों को समझने के लिए छ: वेदांगों को समझना जरूरी है ये छ: वेदांग हैं - शिक्षा, व्याकरण, कल्प, छन्द , निरुक्त और ज्योतिष, जिसमें ज्योतिष भी एक अंग है ) तथा इसे वेदों का अंग एवं तीसरी आंख ( नेत्र ) भी माना जाता है। इसकी दृष्टि भूत भविष्य वर्तमान सभी को देखती और परखती है। इसलिए कहा गया है -

" ऑंख तीसरी वेद की देखे तीनो काल । ज्योतिष उत्तर दे सभी कोई करो सवाल ।।"

ये आध्यात्मिक विधा है और साथ-साथ विज्ञान भी है । बहुत से वे लोग जो ज्योतिष के सम्बन्ध में इसे अवैज्ञानिक कह कर नकारते हैं उन्हे इसके आधार भूमि का कोई भी ज्ञान नहीं है ।

ज्योतिष क्या है - आकाषीय ग्रहों-नक्षत्रों, सितारों की चाल पर संजोग बदलते रहते हूऐ उनका संकेत करते हैं, उनका अध्ययन है ।

" ज्योतिष लय ब्रह्माण्ड की बहती सरित समान । उद् गम पर अध्यात्म है संगम पर विज्ञान ।।" ज्योतिष मात्र विज्ञान ही नहीं, बल्कि एक दिव्य विज्ञान है । ज्योतिष मूलतः भविष्य की तलाश है और इस बात का संकेत है कि कल क्या होगा ज्योतिष सम्भावनाओं पर आधारित नहीं है और न ही इसका भविष्य अनिश्चित है। आवश्यकता है तो बस सहीं दिशा उचित ज्ञान और खोजी निगाहों की।

 

‘‘इस आध्यात्मिक विज्ञान का हमारे अतीत के अनेक ऋषियों ने तरह तरह से अध्ययन किया और अपने अपने सिद्धान्त प्रतिपादित किये। भृगु, पराशर, जैमिनी, वाराहमिहिर आदि की लिखी हुई त्रिस्कंधीय संहिताएं आज भी ज्योतिषीय गणना की आधार भूमि बनी हुई है और आधुनिक अनेक ज्योतिष इन्हीं के सिद्धान्तों के आधार पर फल का प्रतिपादन करते है।

 

आधुनिक युग में ज्योतिष के सम्बन्ध में सर्वाधिक उल्लेखनीय और प्रमाणिक शोघ कार्य किया है। उनमें प्रों के. एस. कृष्णमुर्ति का नाम प्रमुख हैं। हमारे पूर्व ऋषियों नें फलकथन में विविधता लाने एवं कम अन्तराल पर बनने वाली जन्मपत्रियों में दिख सकने योग्य अंतर को रेखांकित करने हेतु सत्ताईस नक्षत्रों के चार चरणों के आधार पर 108 भाग तक काल की गणना की थी। प्रों के. एस. कृष्णमुर्ति ने 108 नक्षत्रीय चरणों का सूक्ष्म व तार्किक विश्लेषण करके 249 की संख्या तक पॅंहुचा दिया यह विभाजन प्रश्न ज्योतिष में अद्वितीय और विश्वसनीय साबित हुआ हैं। आज ज्योतिष जगत में जो क्रान्ति आई है उसके जनक हैं प्रो. के.एस. कृष्णामूर्ति जिन्होंने नक्षत्रों के महत्व पर ज्यादा जोर दिया और उससे सटीक भविष्यवाणी कथन की परिष्कृत विधा को जन्म दिया, जिसको आज हम कृष्णामूर्ति पद्धति से जानते हैं। ज्योतिषमार्तण्ड के.एस. कृष्णमूर्ति के अनुसंधान को कई ज्योतिष्यविर्दो ने आगे बढ़ाते हुए ज्योतिष क्षेत्र में सटीक भविष्य कथन हेतु एक क्रान्ति ला दी है, यह एक ऐसी खोज है जिसमें असफलता का काई स्थान नहीं है।

 

यही कारण है कृष्णामूर्ति पद्धति के अनुयायी भिन्न भिन्न स्थानों पर जन्मपत्रिका का एक जैसा ही फलकथन करते हैं। जिससे ज्योतिष का महत्व भी बढ़ता है और प्रणामित होता है कि ज्यातिष एक दिव्य विज्ञान है।

जबकि ठीक इसके विपरीत परम्परागत ज्योतिषी द्वारा एक ही जन्मपत्रिका का एक ही स्थान पर भिन्न भिन्न फलकथन करते हैं जिससे स्वयं तो उपहास के पात्र बनते ही हैं साथ ही साथ दिव्य ज्योतिष महाविज्ञान का भी उपहास कराते है।